Saturday 25 September 2010

हंगामे-इश्क़

सर झुकाता ही नहीं हंगामे- इश्क़,
इसलिये सबसे उपर है नामे-इश्क़।

है नहीं सारा ज़माना रिंद पर,
कौन है जो ना पिया हो जामे-इश्क़।

इश्क़ में कुर्बानी पहली शर्त है,
इक ज़माने से यही अन्जामे-इश्क़।

दुश्मनों से भी गले दिल से मिलो,
सारी दुनिया को यही पैग़ामे-इश्क़।

फिर खड़ी है चौक पे वो बेवफ़ा,
फिर करेगी शहर में नीलामे-इश्क़।

जिसको पहले प्यार का गुल समझा था,
निकली अहले-शहर की गुलफ़ामे-इश्क़।

हुस्न के मंदिर में घुसने ना मिला,
ये अता है ये नहीं नाकामे-इश्क़।

बस तड़फ़ बेचैनी रुसवाई यही,
मजनू को है लैला का इनआमे-इश्क़।

तर-ब-तर हो जाता हूं बारिश में मैं,
दानी का बेसाया क्यूं है बामे-इश्क़।

हंगाम--पल,समय। रिंद-शराबी। अहले-शहरकी-शहरवालों की।
अता- देन। बामे-इश्क़- इश्क़ का छत।

4 comments:

  1. आया था तारीफ करने.. आपकी यह ग़ज़ल मैंने शायद पहले रवि जी के ब्लाग पर भी पढ़ी थी.. वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें, कृपया...

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  2. "husn ke mandir me ghusne na mila
    ye ata hai ye nahi nakame isq"

    waah! umda gazal.

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  3. रंग के त्यौहार में
    सभी रंगों की हो भरमार
    ढेर सारी खुशियों से भरा हो आपका संसार
    यही दुआ है हमारी भगवान से हर बार।

    आपको और आपके परिवार को होली की खुब सारी शुभकामनाये इसी दुआ के साथ आपके व आपके परिवार के साथ सभी के लिए सुखदायक, मंगलकारी व आन्नददायक हो।

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