Thursday 17 June 2010

आईना

आईनों से नहीं है दुशमनी मेरी , अक्श से अपनी डरती ज़िन्दगी मेरी।
हुस्न ही है मुसीबत का सबब मेरा , क्यूं इबादत करे फ़िर बे-खुदी मेरी ।
साहिलों की अदा मंझधार के दम से , लहरों को पेश हरदम बन्दगी मेरी ।
घर वतन छोड़ आया हुस्न के पीछे , आज खुद पे हंसे सरकशी मेरी ।
सूर्य से क्यूं नज़र लड़ाई थी ,है खफ़ा नज़रों से अब रौशनी मेरी ।
सब्ज गुलशन समझ बैठा मै सहरा को , अब कहां से बुझेगी तशनगी मेरी।
शमा के प्यार मे मै जल चुका इतना ,मर के अब रो रही है खुदकुशी मेरी ।
मै बड़ी से बड़ी खुशियों को पकड़ लाया , दूर जाती गई छोटी खुशी मेरी।
तू नहीं तो नशा कफ़ूर है दानी ,इक नज़र ही तुम्हरी मयकशी मेरी ।

6 मिनट पहले · प्रविष्टि संपादित करें · Delete Post

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